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५०८ ॥ श्री आगा गंवार शाह जी ॥


पद:-

मुरशिद करो गहो मग देखो बहार क्या है।

सन्मुख में राम सीता शोभा सिंगार क्या है।

धुनि ध्यान नूर लय हो अनहद गुमकार क्या है।

सुर मुनि के होंय दर्शन हंसि करत प्यार क्या है।

जिसने जियत न जाना उसका शुमार क्या है।

सब आप ही की लीला कहता गंवार क्या है।६।