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४६६॥ श्री जान मन जी ॥


पद:-

जब तक मिलै न सजनी सजना तब तक जीव धरत नहिं धीर।

मुरशिद करौ पता तब पावो छूटै भव की पीर।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि हरि प्रिय तुम्हरे तीर।

सुर मुनि शक्ती तीर्थ इसी में लागि बड़ी है भीर।

शान्ति दीनता गहि सब देखौ मेटौ भाल लकीर।

कहै जान मन चला चहै जो करै इही तदबीर।६।