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४६५ ॥श्री कतल जान जी ॥


पद:-

कतल जान कह जियत कतल हो तब हरि सन्मुख होवैंगे।१।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि मिलै कलुष सब धोवैंगे।२।

मुरशिद करौ जुरै तब तन मन तुख्म वही उर बोवैंगे॥३।

जे नहिं माने सखुन हमारा जग चक्कर में रोवैंगे।४।