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४२७ ॥ श्री कम खर्च शाह जी ॥(८)


पद:-

खेलैं गोट्टा प्रिय सखियन संग।

एक्कठि दोक्कठि तिक्कठि चौक्कठि बोलैं पूरी पचौकठि का अंग।

एकै एक उलारि गोंचि फिर विलग विलग धरि दिखलावैं रंग।

सब उठाय ऊपर को फेकैं बहुत तरह के दिखलावैं ठंग।

सुर मुनि नभ ते जय जय बोलैं बरसैं सुमन प्रेम में सब पग।५।

सतगुरु करै भजन में लागै पाय जाय सो यह मग।

ध्यान धुनी परकाश दशा लय जाय जियत जीतै असुरन दल जंग।

सुर मुनि मिलैं सुनै नित अनहद टूटि जाय तव द्वैत केर तंग।

श्यामा श्याम सामने राजैं पिये अमी डोलै निर्भय चंग।

कहैं कम खर्च शाह तन तजि कै निजपुर चलि बैठै न होय भंग।१०।