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४२७ ॥ श्री कम खर्च शाह जी ॥ (७)


पद:-

श्यामा सिखावै श्याम को नाचना।

सारी गत की रीति बताय कै हंसि मुख को चट ढाकना।

कटि झुकाय दै भौह मिरोरा बैठि लेटि कै माखना।

दै थिरकैइया कर उठाय दोऊ नयन मूँदि फिर ताकना।

कूदि घूमि फिर धीरे धीरे धरि फिर चक्कर खांचना।५।

राग रागिनी ग्राम सप्त स्वर ताल तान सम सांसना।

भरि अलाप नीचै से ऊपर लै फिर अक्षर छाटना।

सबै बाध्य करतल करवाय कै कीन्ह शुरू फिर जांचना।

सखा सखी बलिराम लखैं तहं बोलि सकैं एक आंक ना।

सुर मुनि नभ ते जय जय बोलैं चाखैं प्रेम क चाखना।१०।

सतगुरु करि यह लीला निरखै छूटै भव का कांखना।

ध्यान धुनी परकाश दशा लय जहां जात नित भाखना।

अनहद सुनै देव मुनि दर्शै हर्ष के फाँकै फाँकना।

सूरति शब्द क मारग यह है हर दम ख्याल को राखना।

सन्मुख सब समाज प्रिय प्रियतम औ बलिराम को टांचना।

कहें कमखर्च अन्त हरिपुर लें जहां जात कोई आंचना।१६।


दोहा:-

कहैं कम खर्च हरि भजौ लगै न नेकौ आँच।

तन छूटै हरि पुर चलौ गर्भ न झूलैं ढांच।१।


चौपाई:-

नाच गान व भाव बताना। सब के तन मन प्रेम बढ़ाना।१।

साज मिलाय बजाय सुनाना। सब पर ख्याल विलग नहि जाना।२।

राधे सखा सखिन बतलायो। बृज भर में क्या मंगल छायो।३।

सतगुरु करि देखो धरि ध्याना। कहैं कमखर्च होय तब ज्ञाना।४।