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४२७ ॥ श्री कम खर्च शाह जी ॥ (९)


पद:-

रूठैं श्यामा मनावैं मोहन।

सखा सखी कहैं सुनि सब लेवैं करै न उर में पोहन।

श्याम आय चट लै उछंग मुख चूमि कहैं तजो रोहन।

चलिये रास भवन मम प्यारी तन मन सब के दोहन।

चारों दिश गृह गृह हम ढूंढ़ि कै यहं पर आये टोहन।५।

तुम बिन रास होयगो कैसे हमैं न नेकौ सोहन।

हरि के वचन प्रेम के सुनि प्रिय मुख छवि लागी जोहन।

उतरि गोद ते चट चल दीन्हों सखा सखी संग मोहन।

सतगुरु करौ लखौ सब पासै क्यों घूमत वन खोहन।

ध्यान धुनी परकाश दसा लय चखौ अमी भरा पोहन।१०।

सुर मुनि मिलैं सुनो घट अनहद सन्मुख प्रिय मनमोहन।

कहैं कम खरच शाह मम बानी मानि करो तो बोहन।१२।


शेर:-

सतगुरु से लै के बानगी सौदा खरीदिये।

धुनि ध्यान नूर लय मिलै कौसर भी पीजिये।१।

सन्मुख में राम सीता जब तक कि जीजिये।

कम खर्च कह तन त्यागि पास वास लीजिये।२।