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३६८ ॥ श्री चर्वन शाह जी ॥


पद:-

रेफ विन्दु मे मन रमा तब फिरि विलग किमि जाई है।

धुनि ध्यान नूर समाधि पा विधि का लिखा कटवाई है।

अनहद सुनै कौसर चखै सुर मुनि के संग बतलाई है।

नागिनि जगै चक्कर चलैं सब कमल उलट खिलाई है।

अद्भुत छटा सिंगार छवि सिया राम सन्मुख छाई है।५।

श्री गरुड़ जी उनके लिये नित दिव्य भोजन लाई है।

मुरछल करन हित काक जी चट नील गिरि ते धाइ है।

दीनता औ शांति गहि करि प्रेम खुदी मिटाई है।

निर्वैर निर्भय ते सदा हरि यश विमल बरसाई है।

सब में लखै निज को वो निज में सब को तो लखि पाई है।१०।

सतगुरु बिना यह जाप विधि कोइ नारि नर नहिं पाई है।

तन त्यागि चलि साकेत तब वै फिरि गर्भ न आई है।१२।