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३५३ ॥ श्री भय्या जी ॥


पद:-

मन पाजी करता नित खटपट।

मति या की ऐसी बौरानी जैसे तिरिया छमकट।

सतगुरु बिना जीव किमि छूटै परयो फेरि अति अटपट।

उठै गिरै बस चलै नहीं कछु निबर्लता से लटपट।

मारग पाय जाय जब भाई पहुँचि जाय तब चटपट।५।

ध्यान धुनी परकाश जानि कै लय में जावै झटसट।

हर दम श्याम प्रिया की झांकी निरखै सन्मुख घट घट।

अन्त त्यागि तन अचल धाम ले छूटै जग का खट खट।८।