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३४७ ॥ श्री महीपति बाबा जी ॥


पद:-

महीपति कह महीपति को मही पर आय पहिचानो।

करौ सतगुर गहौ मारग जुरै तन मन तब सुख मानो।

ध्यान धुनि नूर लय पाकर सुनो अनहद कि धुनि तानो।

मिलैं सुर मुनि करैं आदर प्रेम में निज को जब सानो।

कमल सातौं खिलैं सुन्दर चक्र षट का हो घुमरानो।५।

जगै नागिनि मिटै सुसती लोक लखि होय हर्षानो।

चखौ अमृत कर्म जारो घुमा कर नाम का बानो।

त्यागि तन चढ़ि सिंहासन पर चलो जग में न फिर आनो।