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३४८ ॥ श्री गुड़ गुड़ी शाह जी ॥


पद:-

जगत पितु मातु सीता राम राधे श्याम कमला विष्णु सब कहते।

करो सतगुरु भजो देखो हर समय सामने रहते।

ध्यान धुनि नूर लय होवै देव मुनि आय कर गहते।

सुनो अनहद पिओ अमृत असुर पकड़ो जो गढ़ ढहते।

सुरति को शब्द पर धरिये कहा मानो कहाँ बहते।

गुड़ गुड़ी शाह कह तन मन ते प्रेमी हो तो वै चहते।६।