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३४६ ॥ श्री सच्चिदानन्द बाबा जी ॥


पद:-

वासना सब निगल कर मन भया संघी हमारा है।

करौ सतगुरु गहौ मारग अभी वह तुमसे न्यारा है।

ध्यान धुनि नूर लय जानो जहां चलता न चारा है।

लखौ प्रिय श्याम को हर दम जगत जिनका पसारा है।

देव मुनि आय लें कनियां कहैं तू हरि का प्यारा है।५।

विमल अनहद सुनो घट में मधुर धुनि एक तारा है।

जगै श्री ब्रह्म की आगी कर्म करि देत छारा है।

सच्चिदानन्द कह भाई जियत भव सिन्धु पारा है।८।