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२२८ ॥ श्री जनाका माई तेलिन जी ॥


पद:-

सखियों छोड़ो अब नैहरवा चलि ससुरारि रहैं सुख पाय।

सतगुरु ने सब भेद बतायो उर में गयो समाय।

बाला पन सब खेल में बीता गई जवानी आय।

अब नैहर में गुजर होय नहिं ठग दें धर्म्म नशाय।

माता पिता जन्म के संघी फेरि संग नहिं जाय।५।

तन मन प्रेम से पति सेवकाई करि पति व्रता कहाय।

सदा सोहागिन रहै एक रस कबहूँ नहीं बुढ़ाय।

कहै जनाका पहुँचै सो जो सूरति शब्द लगाय।८।