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२२९ ॥ श्री धरामा माई तम्बोलिनि जी ॥


कजरी:-

सखियों चलो चलें ससुरारि नैहर अब तो फीक बुझाय।

सतगुरु ने सब भेद बतायो तन मन गयो जुड़ाय।

वृथा जवानी जात पिया बिन ठग रहे घात लगाय।

धर्म्म जाय तो पिया त्यागि दें ठौर कहाँ फिरि पाय।

पतिव्रता ह्वै लाज गँवावैं कुल धब्बा लगि जाय।

कहै धरामा पहुँचै सो जो नाम के रँग रँगि जाय।६।