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२२७ ॥ श्री शताना नाउनि जी ॥


पद:-

गोरिया कोरवा में हरि राजैं जब तुम जप की विधि लेव जान।

सतगुरु करौ होय मुद मंगल छोड़ो सान औ मान।

अनहद बाजै हर दम घट में सुनिये मधुरी तान।

सुर मुनि आय आय सँग खेलैं मानै प्रान समान।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रग रोंवन हो जान।

कहैं शताना जियत लखै सो पावै पद निर्वान।६।


दोहा:-

सतगुरु बिन नहिं मिल सकै, यह पद दुर्लभ जान।

कहैं शताना द्वैत गहि, उनके पकड़े कान।१।

अपने रंग में लीन रंगि, करै करावै पाप।

कहै शताना बचै तब, लेय नाम की छाप।२।