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१९२ ॥ श्री विष्णु प्रिया जी का कीर्तन ॥


पद:-

हे वसुदेव सुत हे जग पाला। हे देवकि सुत हे नंद लाला।

हे वंशी धर हे गोपाला। हे मन मोहन हे किरपाला।

हे राधे वर हे वृज चन्द। हे यशुदा सुत हे गोविन्द।

हे करुणा निधि हे सुखकन्द। हे गिरधारी हे निर्द्वन्द।

जय मुरारि जय माखन चोर। जय मधुसूदन जय वर जोर।५।

जय सुर मुनि के प्राण अधार। जय माधव केशव करतार।

जय सब से न्यारे सरकार। जय सब में व्यापक हर वार।

जय मुद मंगल देने हार। जय श्री हरि प्रेमा अवतार।८।