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१०५ ॥ श्री रामदौर जी ॥


पद:-

काहे करत वर जोरी तुम नंद के लालन।

चकर मकर तकि लपटि झपटि चट लेत मटुकिया छोरी

तुम नन्द के लालन।

ग्वाल बाल संघ मिलि दधि खावत हँसि हँसि के सब फिरि बतलावत

देत मटुकिया फोरी तुम नन्द के लालन।

हाट बाट औ घाट न मानत जो मन भावत सोई ठानत

लाज धरेव सब छोरी तुम नन्द के लालन।

आधी निशि में गृह गृह जाते एक से रूप अनेक बनाते सोवत

लखि झिझकोरी तुम नन्द के लालन।५।

हम सब भागि कहाँ को जावैं दिन औ रैनि चैन नहिं पावैं

छोड़त काहे न चोरी तुम नन्द के लालन।

तुम्हरे घर उरहन लै जावैं जसुमति माई डाट सुनावैं

लागु न मानैं तोरी तुम नन्द के लालन।

एकौ करम रहे नहिं बाकी कौन भांति को तुमको ताकी

ऐसे ढीठ भयोरी तुम नन्द के लालन।

जब तक जियें सहैं का करिहैं या विधि रहैं न ब्रज से टरिहैं

हर दम तुम्हरी होरी तुम नन्द के लालन।

उपर से हम सब यह भाखैं प्रीत तुम्हारी भीतर राखैं

सब की मति किह्यो भोरी तुम नन्द के लालन।१०।

को तुम सम मन मोहन प्यारे सब के उतपति पालन हारे

सब को लेत बटोरी तुम नन्द के लालन।

राम दौर कहैं सखि सब हरि से बोलैं वचन अमी जिमि बरसे

ऐसी प्रेम में बोरी तुम नन्द के लालन।१२।