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१०६ ॥ श्री पण्डित प्यारे लाल जी ॥


पद:-

मुरली विपिन में श्याम जिस समय बजाते थे।

खग मृग भुजङ्ग जीव सुनि के बहुत आते थे।

चारों तरफ़ से घेर करके बैठ जाते थे।

सुन सुन के तान प्यारी कितने सर हिलाते थे।

सब मस्त होके धरनि पै फिर लेटि जाते थे।५।

सुधि बुधि रहे न नेकौं ऐसे लुभाते थे।

उठि श्याम सुंदर निज कर सब पर फिराते थे।

निज निज वतन को तब सब उठ कर के जाते थे।

इस विधि दया के सागर सब को खेलाते थे।

कहिं कोई दिन उन्हीं से सब तन चटाते थे।१०।

तन चाटने के वक्त आप मुसकिराते थे।

बैठैं कभी खड़े हों कभी लेट जाते थे।

दहिनी औ बाईं करवट कभी पट हो जाते थे।

कबहूँ उतान रहके पग व कर उठाते थे।

सब में समान प्रेम आप कर दिखाते थे।

कहते हैं प्यारे लाल क्या आनन्द मचाते थे।१६।


शेर:-

सरकार जब हमारे सब जीवों को माना।

तब हम अगर न मानैं तो नर्क हो जाना।१।

वह सब हमारे भाई बंधु संग ही आये।

निज निज करम अनुसार सबी देंह हैं पाये।२।

सब योनियों में उत्तम यह नर शरीर है।

सतगुरु से जान चेतो सब वस्तु तीर है।३।

कहते हैं प्यारे लाल अगर चूकि जावगे।

तो परि के चौरासी में फिर चक्कर लगावोगे।४।


शेर:-

जाते थे घाट छोड़ि नहाने को कभी श्याम।

जमुना के जल में ठाढ़े हो कटि भरि जहां हो आम॥

जल जीवों को आवाज़ दें लेकर मुरली में नाम।

मेढक मगर कमठ और मच्छलियां तमाम॥

चारों तरफ़ से घेर लें तब बोलैं उनसे श्याम।

सब मिल के एक श्वर से बोलो तो राम राम॥

सब सुनते ही कहने लगैं जै जै श्री राधेश्याम।

घनश्याम एक एक को दोनों करों से थाम॥

उर में लगा के बोलैं बस हो गया अब काम।

सुनकर के जीव डुबकि लगा कर करैं प्रनाम।५।

पैरों पै लोटते हैं शान्ति से खड़े हैं श्याम।

जब सबकि बारी हो गई बाहर भे शोभाधाम॥

तन मन लगा के सुमिरन करि लेव आठौं याम।

सतगुरु से जान लो विधी लागै न कुछ भि दाम॥

कहते हैं प्यारे लाल सुफ़ल हो यह नर क चाम।

धुनि ध्यान नूर लै हो सन्मुख में राधेश्याम।८।