५५ ॥ श्री छन्नू शाह जी ॥
पद:-
करुणा क्रंदन विषयों का करि बल वीर्य लुटाय दिहे मनुवां।
पांचों ठग जग में हैं जाहिर तिन संग में भंग किहे तनुवां।
सब दिशि तो सर्प फिरै टेढ़ा ग्रह आय समेटि रहे फनुवां।
अधरम से सुक्ख नहीं मिलता चलि नर्क में दुःख सहै बनुवां।
या से ले मानि कहा मेरा संग लागु लहै अपना धनुवां।
मुरशिद से सुमिरन की विधि लै अब नाम गहै कहता छनुवां।६।