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५४ ॥ श्री पुंगव मुनी जी ॥


वार्तिक:-

बैखरी बानी से राम नाम तन मन प्रेम लगाय जपा जावै तो प्रथम बैकुण्ठ में बास हो। यदि मध्यमा बानी से जपा जावै तो दूसरे बैकुण्ठ में बास हो। यदि पैशन्ती बानी से जपा जावै तो तीसरे बैकुण्ठ में बास हो। यदि परा बानी से जपा जावै तो चौथे बैकुण्ठ में बास हो। और यदि चारों बानी एक बानी में जो अजपा ब्रह्म बानी है उसमें मिला दें तो त्रिगुणातीत हो जाय।

इसी ब्रह्म बानी से यह चारों बानी प्रकट हुई हैं। यह बानी सब में व्यापक है यानी जो देखने में आता है उसमें और जो नहीं आता उसमें। इस से दोनों सरूपों का ज्ञान हो जाता है फिर कोई इच्छा बाकी नहीं रहती। यह भेद मुझे श्री स्वामी रामानन्द जी ने बताया था सो मैंने तुम्है बतलाया। इस बानी को जानकर जीव जरा मरण से छूटि जाता है।