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४१२ ॥ श्री राम अधीन सिंह जी ॥

(अवध वासी)

चौपाई:-

शिव से रहा प्रेम कछु मेरा। या से भा कैलाश बसेरा।१।

रामाधीन कहैं हर्षाई। आनन्द वहँ की वरनि न जाई।२।