४११ ॥ श्री दर्शन सिंह जी ॥ (अवध वासी) दोहा:- धर्म कार्य्य कछु कीन्ह हम सो बहु जीवन जान। दर्शन सिंह कहैं गयन अन्त में हरि पुर मान॥