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२४ ॥ श्री भीखा जी ॥

जारी........

तब चारौं जन मिलि राजै देंय गिराई।

कोइ पावन पै कोइ पेट पै बैठैं धाई।

कोइ वाहन पर बैठे रहे हैं पैर हिलाई।१००।

राजा चुपके रहैं परे हिये हुलसाई।

फिरि दौरि के मातन के ढिग पहुचैं जाई।

तब बैठि जाँय चुपचाप शान्त सब भाई।

माता लै हांथी दांत के कंघा आई।

जिनमें नग जड़े अमोल कौन बतलाई।१०५।

झारैं केशन को प्रेम मगन सब माई।

मातन के दोउ कर पकरि लेंय सुखदाई।

माता यह खेल तो जानैं रोज क भाई।

जब छोड़ैं तब फिर सुख से मलैं बनाई।

केशन में गूंथैं फूल कली मँगवाई।११०।

क्या भांति भांति के रंग वरनि नहिं जाई।

जब खिलैं कली तब फूलैं फूल सुहाई।

जैसे वृक्षन में खिले रहैं सुखदाई।

तनको कुम्हिलावैं नहीं मानिये भाई।

है लीला हरि की अगम पार को पाई।११५।

हैं काले काले बाल मनोहर भाई।

कछु नागिन काक औ भंवर मिसाल बताई।

नासा मणि कहत बुलाक जिन्हैं सब भाई।

माता चारौं पुत्रन के देंय लगाई।

सच्चे पत्थर की कनी जटित हैं भाई।१२०।

चमकैं जैसे फणि मणी उजेरिया छाई।

भूषन औ वसन सजाव कहा नहिं जाई।

जो देखै आँखिन जाय देखि छकि जाई।

जाड़े में फरगुल ओढ़ैं चारौं भाई।

जब दौड़ैं तब वह फहर फहर फहराई।१२५।

बोलैं तोतरि क्या बैन चारिहू भाई।

सुनिकै प्यारे अति बैन बहुत सुख आई।

पितु मातु हिया हुलसाय लेंय उर लाई।

सूरति चारों कुँवरन की हिये समाई।

नहिं नैनन ते मम टरें कहैं पितु माई।१३०।

प्राणों के प्राण हमार यह चारौं भाई।

सब शिशुन क मालूम रहे समै अब आई।

कहैं माता लै अब चलौ राम गृह धाई।

खेलन को होत अवेर राम रिसियाई।

तुम हमका आओ पठय समय गो आई।१३५।

बिन खेले हमको चैन परत नहिं माई।

खाने को मिलत है रोज विचित्र मिठाई।

माता हँसि हँसि के कहैं चलो पहुँचाई।

तुमरे सब के संग हमहूँ सुख नित पाई।

हैं धन्य भाग्य हम सब की अवध में आई।१४०।

नित दर्शन देवैं सब को चारौं भाई।

हमरे सब के हरि उर में गये समाई।

देखे बिन परत न चैन कहौं समुझाई।

तुम खेलौ हम सब बैठि कै देखैं भाई।

इतना कह कर चलि देंय सबै तहँ आई।१४५।

ब्राह्मण औ क्षत्री वैश्य के शिशु तहँ आई।

जारी........