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२४ ॥ श्री भीखा जी ॥

जारी........

तिनको वह लेवै चूगि मनै सुखपाई।५०।

दौरैं हरि बाकी ओर उड़ै नहिं भाई।

भागै चारौं दिशि अपनों दाँव बचाई।

तब प्रभु सब मीठा फोरि के देंय बहाई।

चूगै फिरि निर्भय काग आपु मुसुख्याई।

फिरि माता के ढिग जाय के लावैं धाई।५५।

जब खाय के जाय अधाय पियै जल भाई।

तब प्रभु होवैं परसन्न देंय उड़वाई।

यह लीला होवै नित्य कौन कहि पाई।

शिव शारद नारद शेष रहे गुण गाई।

भोजन करने जब बैठैं भूपति जाई।६०।

पहुँचैं तब चारों कुँवर दौरि के भाई।

नाना विधि व्यञ्जन थार में देंय धराई।

भूपति विहँसैं औ कहैं खाव सुख पाई।

तब चारों भाई खाँय औ देंय छिटकाई।

भूपति के ऊपर डारैं जूठनि भाई।६५।

छोटी झारिन में जल पीवैं सब भाई।

फिर भूपति ऊपर सब मिलि जल देंय नाई।

भूपति के मन में नेकौं दुख नहिं आई।

भोजन करि लेवैं आप प्रेम से भाई।

माता तीनों मन मगन बोलि नहिं जाई।७०।

तब भूपति सब को फेरि देंय नहवाई।

पोछैं साफ़ी से देह पलंग बैठाई।

माता तब वहँ पर आय देंय पौढाई।

पँखा की करैं बयार झुलावैं माई।

सोवैं तहँ चारिउ भाय पिता सुख पाई।७५।

माता तब भोजन करैं जाय हर्षाई।

भूपति रहैं बैठे खुशी में नींद नहि आई।

माता तब ह्वै निश्चिन्त जाँय तहँ धाई।

भूपति तब करैं अराम राम कहि भाई।

माता तब लालन संग पौढ़ि जाँय भाई।८०।

दासी मिलि ढारैं बहुत देयँ तँह आई।

जब जागैं चारों कुँवर सवन सुखदाई।

तब माता छोरैं शिशुन के केश वकाई।

तब राम भरथ को झोटा पकरैं धाई।

धरनी में जावैं लोटि भरत जी भाई।८५।

तब दौरि शत्रुहन राम को पकरैं जाई।

तब लषन लाल शत्रुहन को देंय गिराई।

तब भरथ दौरि कर लछिमन पर रिसियाई।

तब राम भरथ को पकरि लेंय मुसुकाई।

मातन के मुख से बोल कढ़त नहिं भाई।९०।

अस प्रेम प्रीति की रीति बढ़ी सुखदाई।

फिरि दौरि कुँवर सब मातन पास में जाई।

पीछे ह्वै जावैं खड़े गले कर लाई।

तब मूंदै आंखी मातन की हँसि भाई।

माता नहिं बोलैं कछू सत्य कहौं भाई।९५।

तब भूपति के ढिग जाय के उधुम मचाई।

जब देखैं बैठे दशरथ जी को भाई।

जारी........