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२४ ॥ श्री भीखा जी ॥

जारी........

क्या सदाचार से खेल होत सुखदाई।

है बना गेंद का भवन हरे रंग भाई।

तहँ रंग बिरंगे धरे गेंद बहु भाई।

हैं बड़े मुलायम गेंद कड़े नहिं भाई।१५०।

मखमल के भीतर सूत भरा सुखदाई।

जाली बीनी तिनके ऊपर है भाई।

नहिं जानि परै केहिविधि ते कौन बनाई।

भीतर के सूत क हाल जौन बतलाई।

श्री नारद जी ने हमको दीन बताई।१५५।

श्री पारवती लक्ष्मी ब्रह्मानी माई।

इच्छा ते प्रगटे गेंद फटैं नहिं भाई।

होवैं कबहूँ नहिं मैल जौन जैसाई।

हम तुमको दीन बताय मानिये भाई।

क्या खेलैं गेंद क खेल सबै मिलि भाई।१६०।

गोंचैं हांथन पर दौरि दौरि सुखपाई।

मखमल के गद्दे बिछे श्वेत रंग भाई।

तिन पर सब खेलैं खेल करैं लरिकाई।

मारैं सब सब के गेंद चोट नहिं आई।

तहँ उठत शब्द गदबद गदबद का भाई।१६५।

फिर गेंद के खेल को बन्द करैं सब भाई।

गोली कर में लै लेंय सुनो हरषाई।

सब खेलैं अपना अपना दांव बताई।

चट पट चट पट गोलिन आवाज सुनाई।

दो गज़ का लम्बा चौड़ा और उचाई।१७०।

गोलिन से कोना भरा एक है भाई।

चिक्कन अति नीकी चमकीली सुखदाई।

हैं रंग रंग के पत्थर की सब भाई।

कहते जिनको है पथर कला सुर राई।

ब्रह्मा विष्णु शिव इच्छा ते प्रगटाई।१७५।

आवैं देखैं नित खेल सत्य बतलाई।

फूटै नहिं टूटै गोली मानहु भाई।

है वज़न न हलकी मजे कि जानहु भाई।

नहिं मैली होवैं सब रंगी सुखदाई।

माता के घूँघट खोलैं चारौं भाई।१८०।

माता मुसक्याय के गोद में लेंय बिठाई।

अंचल ओढ़ाय के दूध पिआवैं माई।

पीवैं चारों सरकार मगन मन भाई।

पी होवैं दूध उठैं खेलैं हरषाई।

दौरैं औ ऊपर को उछरैं सब भाई।१८५।

लोटैं जब आंगन में चारौं सुखदाई।

जैसे बेलन लुढ़काय देंय कोइ भाई।

आंखैं करि लेवैं बन्द न बोलैं भाई।

फिरि ढनगि के एकै जगह पै आवैं भाई।

उठि बैठैं औ मुसक्यावैं चारौं भाई।१९०।

क्या चरित करत नित नये नये सव भाई।

पृथ्वी व्याकुल हो पाप सहा नहिं जाई।

तब लेवैं हरि औतार देर नहिं लाई।

जब बाढ़ै दैत्य क वंश सुनो चितलाई।

तब उनका करैं संहार जगत सुख पाई।१९५।

जारी........