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२४५ ॥ श्री ललिता जी ॥


होली:-

होली खेलत राधेश्याम श्याम रंग भरि पिचकारी थाम थाम ॥१॥

लये संग सखा सखी धाम धाम रंग डारत हँसि कहि नाम नाम ॥२॥

सब प्रेम मगन नर बाम बाम लखि छोड़ दियौ सब काम काम ॥३॥

छवि वृज की अमित हर ठाम ठाम सुर मुनि देखत लै नाम श्याम ॥४॥

बाजा बाजत धुनि ग्राम ग्राम ॥५॥

छः राग औ छत्तिस रागिनियाँ करैं गान मधुर स्वर श्याम श्याम ॥६॥

भये बादर लाल अबीर उड़ै अति कौन कहै दिन शाम शाम ॥७॥

मलयागिरि चन्दन मृगमद केसर अर्क गुलाब है धाम धाम ॥८॥

यह रंग चलै पिचकारिन में मुख रोरी मलै हरि थाम थाम ॥९॥

श्री राधे ने सौन दई सखियन को दौड़ि पकड़ि लियो श्याम श्याम ॥१०॥

तहँ जिहि दिसि देखैं श्याम खड़े मुसकाय रहै घनश्याम श्याम ॥११॥

सकुचाय के छोड़ि करै विनती प्रभु धन्य धन्य जै श्याम श्याम ॥१२॥

रूप अनूप अनन्त बने हरि शेष रहै चुप थाम थाम ॥१३॥

हरि इच्छा ते प्रगट अबीर भयौ तहँ टाल लगे सब धाम धाम ॥१४॥

हीरन का चूरन सोहै तहाँ मानो कोटिन सूर्य क धाम धाम ॥१५॥

एकै मे मिलाय के झोरी भरैं औ उड़ावैं करैं यह काम काम ॥१६॥

इतर फुलेल कि कौन कहै यमुना जी रँगी घनि श्याम श्याम ॥१७॥

इह लीला विचित्र मची वृज में सब आप करैं यह काम काम ॥१८॥

मन मोहि लियौ मन मोहन ने वह आपै हैं घनश्याम श्याम ॥१९॥

सब सुर मुनि लाल भये नभ में हरि कीन्हां वहां यह काम काम ॥२०॥

सब यानन में हरि मारि दियौ पिचकारिन ते रँग थाम थाम ॥२१॥

उन यानन ते रंग ऐसे गिरै मेघवा भरसे हर ठाम ठाम ॥२२॥

एक हाथ ऊँचाई कि धार चलै सराबोर भये नर वाम वाम ॥२३॥

पृथ्वी औ आकाश को एक कियो यह खेल कियौ घनश्याम श्याम ॥२४॥

छवि बरनि सकै कहौ वृज की कौन जहँ रहत सदा घनश्याम श्याम ॥२५॥

मुरली की मधुर धुनि बाजि रही सबके सन्मुख घनश्याम श्याम ॥२६॥

सब चकित थकित सोई जानै कछू जो जानै अभ्यन्तर नाम नाम ॥२७॥

क्या लीला करैं श्री कृष्ण विष्णु हैं ऐकै सुनौ श्री राम राम ॥२८॥

प्रभु अधम उधारन भक्तों को सुख देत सदा यह काम काम ॥२९॥

सब में सब से हैं न्यारे रहत हैं अकाल सदा श्री राम श्याम ॥३०॥

ललिता कहैं तन मन रोम रोम हरि विसरत नहिं वसु याम याम ॥३१॥

नहि रूप औ रूप सबूत सही गुरुदेव से लै जपौ नाम नाम ॥३२॥


पद:-

रावण ने साठि दिन में वेदों का टीका कीन्हा ॥१॥

श्री शम्भु औ उमा ने आशीर्वाद दीन्हा ॥२॥

जानै औ मानै सोई जिन राम नाम चीन्हा ॥३॥

मानैंगे कैसे सुनिये कपटी कुटिल मलीना ॥४॥

सुवरन के पत्रों ऊपर अक्षर बने करीना ॥५॥

रावण के पीछे शिव ने श्री शेष जी को दीना ॥६॥

आठौ पहर जे जपते हैं बास पास लीन्हा ॥७॥

ललिता कहैं मम तन मन घनश्याम हैं नगीना ॥८॥


पद:-

श्री राम कृष्ण हरि का नित मनन करना चाहिये ॥१॥

हैं रूप तीनों एकै यह मन में लाना चाहिये ॥२॥

माता अयोध्या जी को नित सिर झुकाना चाहिये ॥३॥

मञ्जन को सरयूजी के आनन्द से जाना चाहिये ॥४॥

यह बात अपने दिल में सब को जमाना चाहिये ॥५॥

श्री देव मन्दिरों में दर्शन को जाना चाहिये ॥६॥

श्री पृथ्वी देवी जी को नित सिर नवाना चाहिये ॥७॥

तैंतीस कोटि देवों की जय जय मनाना चाहिये ॥८॥

साढ़े तीन कोटि तीर्थ हैं उनको भी माना चाहिये ॥९॥

दिल को किसी के हरगिज़ नाहीं दुखाना चाहिये ॥१०॥

जारी........