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॥ वैकुण्ठ धाम के अमृत फल १६ ॥ (विस्तृत)

२३१. भजन का स्थान:-

घर में एक साफ सुथरी हवादार जगह बना ले। उसमें कोई न जाय। अपना आसन, माला अलग रक्खे। १० पर सोवे ३ पर उठे। भजन रात में ही होता है। दुनिया जागी मन भागी। सादा भोजन से मन सादा हो जाता है। लहसुन, प्याज, करेला, कड़ू मूली, मिरचा, चटपटी चीज काम वासना पैदा करती है। मीठा खाने से मन लबरा होता है। सब खाने से भजन न होगा। अवगुण जीभ में हजार हैं। एक बार खाने से पाचन शक्ति ठीक रहती है। आलस्य नहीं आता। 

२३२. अपनी नेक कमाई का सादा भोजन भगवान को अर्पण करके पाने से रोग नहीं होता। लाभ रहता है। हाजमा ठीक रहता है। दस्त साफ होता है। शरीर हलका रहता है। तकलीफ बनाने वाले को नहीं होती। खाने वाला जल्दी खाकर उठ जाता है। कई बर्तन नहीं लगते। भजन में मन धीरे धीरे लगने लगता है। मति शुद्ध होकर पाप कटते हैं। 

२३३. भगवान की लीला भगवान जानें। जितना जनावें (ज्ञान करा देवें) सन्तोष मान ले। जो शहीद लोग लड़ाई में मरे, सर काटा गया, वह देखने में आये सर हाथ में लिये जा रहे हैं, जब कोई मिला। 

२३४. तांबे की कटोरी में गाय के घी में बत्ती बना कर घर के ताखे में पूरब-पच्छिम मुंह हो, दिया जलने के पूर्व नित्य जला दे। रविवार, मंगलवार से शुरू करै। शौच जाने पर नहा ले। वैसे हाथ पैर धो ले। जलाकर श्री हनुमान जी के हाथ जोड़ ले। आला पोत दे, फिर छुए नहीं। तांबे की कटोरी हो। सैकड़ों बरस के भूत भाग जांय। लहसुन प्याज घर में न रहे, छिलका तक। 

२३५. साल में एक बार जो ग्रह खराब हो, उसका जप-दान करने से उनका हक निकाल दे। अब हम ग्रहों का दान जप में खिचड़ी, नमक, लकड़ी का पैसा औकात माफिक, गरीबों को बंटवा देते हैं। 

२३६. बेइमानी की कमाई न खाये। खुद नरक छोड़ जाये। लड़कों को नरक होता है। किसी से बैर न करै। सब जीवों पर दया करै। 

२३७. खुद तकलीफ सहे, दूसरे को आराम पहुंचावै। 

२३८. पहले वाली चाल छोड़कर, ऋषी-मुनी जो कह गये अब ऐसी चाल चलो। बात मानने की जरूरत है। तब कल्याण होगा। 

२३९. (हमारे द्वारा दी हुई) पुस्तक दो बार पढ़कर, फिर हमसे पूछना। तुम इस रीति से चल पावोगी, तब तो भगवान के यहँा रजिस्टर पर नाम लिखाओ नहीं तो बेकार पूछना है। रहनि, गहनि, सहनि पहले लिखी जाती है, तब सब भजन। सेवा धर्म से ही पट खुल जाता है। दया धर्म के बिना गती नहीं होती है। 

२४०. कृपा का अभी श्री गणेश है। चपलता छोड़ दो, देखो आगे क्या क्या होगा। भजन होने से जब मन लगने लगेगा, ध्यान होने लगेगा। लड़का लड़की सयाने होने पर ब्रह्मचर्य रहना ही चाहिये। साधक को इसे घर का नरदहा समझ कर त्याग देना चाहिए। 

२४१. परिवारदार कितने हज़ार भजन करते हैं, और दया धर्म की मूरत हैं। कहाँ तक लिखें। हमें ५२ साल अयोध्या में हो गये। बड़े बड़े अफसर भजन करते हैं परोपकार करते हैं, यह सब घर ही में होता है। ३३ कोटि देवता ८८ हज़ार ऋषि मुनी हैं, सब के परिवार हैं। राम जी ४ भाई थे सबके दो-दो पुत्र थे। भगवान ने बराबर राज्य बांटा है। कृष्ण भगवान के पुत्र-पोता थे। विरक्त सुखदेव जी, नव योगेश्वर, नौ नाथ, सनकादि, लोमस जी, यह सब अजर अमर हैं। नारद की दुरदसा (दुर्दशा) हो गई। ६० लाख साधू हैं, उसमें ६० भजन नहीं करते। सब बातें सीखे, पेट पालते हैं। 

२४२. एक अहीर था, आश्रम में आया। रामायण पाठ किया। बोला महाराज भूख प्यास हरि गई। यह भक्त के लच्छन हैं। 

२४३. महाराज कह गये, जो भगवान को जान गया भगवान का हो गया, जाति कोई हो, उसकी हमसे ज्यादा सेवा करना। 

२४४. दो माह गुरू भगवान बैठे, ज्यादा नहीं। एक दिन आलस्य आया, महाराज ने लकड़ी घोस दी। बस उस दिन से आलस्य नहीं आया। 

२४५. ब्रह्म मुहूर्त २ बजे से लगता है, सब ऋषी उनकी पत्नी २ बजे उठ कर भजन करती थीं। भजन में सहन शक्ति की बड़ी जरूरत है। सब जीवों पर दया करे। बातें पकड़ कर चलो तो भजन करो; न करो तो न करो। जान कर न चलने से नरक होता है। जब अपने इष्ट में रात दिन निरन्तर मन लगा रहे तब कुछ होय। निरछल जीव पर ही भगवान कृपा करते, प्रत्यक्ष होते हैं। १० गारी (गाली) कोई देय, बोले नहीं।