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॥ वैकुण्ठ धाम के अमृत फल १५ ॥ (विस्तृत)

२१५. जैसे शौच का लोटा न माँजा जाय तो बेकार। वैसे शरीर और मन बिना नेम-टेम (समय से भजन) के। 

२१६. जिस सुनाने वाले के आंखी कान (खुले) नहीं हैं, उसकी कथा न सुने। बिना सिद्धों के वाक्य पर चले किसी संत की ताकत नहीं, उसको सुधार सके। जबानी जमा खर्चा से काम न चलेगा। मरना पैदा होना लगा रहेगा। 

२१७. जिनको धीरज विश्वास है, उन्हें हमसे कहने की जरूरत नहीं परती। सब काम भगवान ठीक कर देते हैं। सच्चे भक्त हैं कभी पत्र तक नहीं देते। २१ आदमी ४० औरतें हैं। हम उन्हें किसी से नहीं बताते। दुनियां जानकर उनको परेशान करेगी, समै (समय) खराब करेगी। अपना कुछ न करै उसे सब मिल जाय, दुनियां यह चाहती है। करना पड़ेगा तब गती होगी। 

२१८. एक कन्या छ: माह की थी, उसकी माता बद्रीनारायण गई। थक जाने पर कन्या को एक झाले में ढांककर छोड़ दिया। लौट कर आई तब देखा कन्या अपना अंगूठा पी रही है, शरीर दग-दग हो रहा है। कन्या का ब्याह हुआ। लड़के वाले ने बड़ा कष्ट दिया। ३२ की उमर में शरीर छोड़ा। सब भोग है। 

२१९. पद: बरगद, पीपर, पाकर, गूलर। 
चिड़ियां खाय करैं खूब हुल्लर॥ 
न चार पेड़ लगा सके तो एक ही पेड़ लगा दे, यह भन्डारा चिड़ियों का है, वैकुण्ठ ले जाता है॥ 

२२०. पद: ईश घट में ही छिपा था, हमैं मालूम न था। 
द्वैत का परदा पड़ा था, हमें कुछ होश न था॥ 

२२१. जब किसी देवी देवता से प्रेम होगा तो नेत्रों में आँसू आ जावेगा, रोम रोम पुलकावली (रोमांचित) होने लगेगी, कंठ गद-गद हो जावेगा। यह मन लगने की पहली सीढ़ी पर पैर रखना है। 

२२२. पद: जब टेम नहीं तब नेम नहीं। 
जब नेम नहीं तब प्रेम नहीं॥ 
जब प्रेम भया तब नेम गया। 
जब नेम गया, तब टेम गया॥ 

२२३. भगवान सबका समय बांधे हैं, समय को कोई टाल नहीं सकता। लड़का, लड़की, आदमी, धन, मकान, खेती सब भगवान की है, अपना कुछ नहीं है। समय, स्वांसा, शरीर भगवान का है। जो अपना माने है, वह मौत और भगवान को भूला है। पेट में भगवान खाने को देते थे। जब पैदा किया तब माताजी का दूध देने लगे। अब सयाने भये तो अन्न पानी देते हैं। तुम सब क्या जानो, अपनी अपनी भाग्य लेकर आते हैं, वही खाते पीते हैं। नौकरी जो ईमानदारी से करते हैं, उन की दोनों तरफ जैकार होती है। जो बेइमानी करता है उसके पैसे सब घर के लोग खाते है। सबको नरक होता है। 

२२४. मंत्र ले लिये पाप नष्ट हो गया। नाम में बड़ी शक्ति है। जो कहा जाय वैसे चलो, तब कल्याण होगा। पहले वाली चाल छोड़कर अब ऐसी चाल चलो। बात मानने की जरूरत है। 
२२५. कष्ट में विशेष भजन करना चाहिए, शरीर ही छूट जाय तब। शरीर बीमार हो - (तो) मल, मूत्र से निपटकर कपड़े बदल कर गंगाजल, तुलसी दल, रेणुका (रज) मुख में डाल ले। लेटे-लेटे न माला हो सके, (तो) मुख में जपे। पूरन कृपा करैं हरि तापर। 

२२६. ऐश, आराम छोड़ देने पर भजन हो सकता है। आडम्बर छोड़कर नेम टेम (समय पर अपना जप पाठ) करना परता है। शाम को रोटी सवेरे से आधी खाय। प्रात: के भोजन की अपेक्षा सायं का भोजन आधा होना चाहिये। 

२२७. दिली शौक होना चाहिये। भजन रात में ही होता है। १० पर सोवो ३ पर उठो, आलस्य पर लात मारो। आलस्य में भजन न होगा। और पाप भजन से नासै (नष्ट हो जाता है, पर) आलस्य की माफी नाहीं। 

२२८. अभी आप ने स्वांसा, शरीर, समय, वैभव, स्त्री-पुत्र, परिवार का मान रक्खा है। अब भगवान का मानों। 

२२९. पद: प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय। 
राजा परजा जेहिं रूचै, शीश धरै लै जाय। 

२३०. पद: अंसुअन जल सींच सींच, प्रेम बेल बोई। 
अब तो बात फैल गई, जानै सब कोई॥