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॥ अथ जय माल वर्णन॥

 

जारी........

सदा अनइच्छित तुम सुख पाय। कहैं समुद्र सुनो मम माय।१९५०।

 

बचन एक और मेरे मन आय। बंधायो सेतु श्री सुखदाय॥

चरण परिगे हैं प्रभु के आय। युद्ध तक रहै सेतु यह भाय॥

फेरि या को दीजै तुड़वाय। नहीं तो दुष्ट लोग यहँ आय॥

धरैंगे चरण सहा नहिं जाय। टूटि जाई तो हम हर्षाय॥

करब नित पूजन प्रेम से माय। कहैं माता तब बचन सुनाय।१९६०।

 

तुम्हारी इच्छा दें पुरवाय। चलैं जब जीति अवध सुखदाय॥

पवन सुत तोड़ि दें यहि आय। पवन सुत सुनैं कहैं हर्षाय॥

कौन यह कार्य्य बड़ा है माय। एक ही पग दाहिन धरि माय॥

तूरि हम बीच में देंय गिराय। रहै तब ही तक पुल सुखदाय॥

फेरि रहि सकै नहीं यह जाय। लड़ाई हो समाप्त जहँ माय।१९७०।

 

श्राप का योग निकल तहँ जाय। फेरि नल नील की नहीं उपाय॥

धरैं पाथर जो जल उतिराय। प्रभू सब हमैं दीन बतलाय॥

दास से स्वामी कहूँ छिपाय। होय सच्चा सेवक सुखदाय॥

भीतरौ बाहेर सब लखि पाय। नहीं कोइ अन्तर हमसे माय॥

लोक मर्य्यादा हित प्रभु आय। जौन कछु मन में प्रभु के आय।१९८०।

 

एकता आतम की ह्वै जाय। तार एक तार होय सुखदाय॥

कहैं पीछे से बचन सुनाय। आप माता औ पितु रघुराय॥

आप ते सब कोइ उपज्यौ माय। आपका नाम मकार कहाय॥

रकार के संग में शोभा छाय। राम अस नाम बन्यौ सुखदाय॥

जपैं जाको हरि शिव शेषाय। रकार के अन्तरगत भी माय।१९९०।

 

मकार के अन्तरगत रा आय। एकता छूटि सकै नहि माय॥

रकार मकार नहीं बिलगाय। मंत्र का नाम पुरुष है माय॥

मंत्र की शक्ती मातु कहाय। रकार को बीज कह्यौ शिव गाय॥

बृक्ष अन्तरगत वा के माय। राम अस नाम बृक्ष भा माय॥

बीज ता में फिर प्रगटे आय। रकार के अन्तरगत तुम माय।२०००।

 

जपै मुक्ती भक्ती सो पाय। जपै जो दुइ अक्षर चित लाय॥

रहै जग में दर्शन हों माय। नाम निर्गुण एक अक्षर आय॥

नाम सर्गुण दुइ अक्षर माय। जपैं जोगी जन रा को माय॥

और सब जपैं मकार मिलाय। एक ते सत्य लोक देव माय॥

औ दुइते बैकुण्ठै तक जाय। अकथ यह लीला को कहि पाय।२०१०।

 

जहाँ तक बतलायो सो गाय। सुनै यह बचन उदधि सुखदाय॥

हर्ष करि चरण परै फिर धाय। बिहंसि कर माता उर में लाय॥

दीन कर शिर पर दहिन फिराय। चह्यो लछिमन हनुमान के धाय॥

छुवैं हम चरन छुवन नहिं पाय। लखन ने रोक दीन समुझाय॥

बड़ा अनुचित होई यह भाय। समुझि कै हाथ जोड़ शिर नाय।२०२०।

 

गयो आवरण में तुरत समाय। चलैं सीता माता सुखदाय॥

लखन पीछे हनुमान सहाँय। आयकै कटक मध्य हर्षाय॥

बैठि जाँय शान्ति रूप सुखदाय। जाय रावण स्नान को भाय॥

लौटि आवै बैठे हर्षाय। लखन ते कहैं राम सुखदाय॥

मंगावो कन्द मूल फल भाय। मिठाई मेवा बहु बिधि आय।२०३०।

 

रोज चण्डी माता पठवाय। चुकै नहिं कटक के पाये भाय।

शाम को दें समुद्र ढिलवाय। खाँय जल जीव खुशी से भाय॥

रहे हैं जल में अति सुख पाय। धरी सुग्रीव के पास में भाय॥

बाँटते अंगद हैं हर्षाय। हुकुम दें जाम्वन्त सुखदाय॥

पवन सुत देवैं हाँक सुनाय। आय सब कटक लेय हर्षाय।२०४०।

 

पाय के पूरण हों सब भाय। देव सीता रावण को भाय॥

जारी........