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॥ अथ जय माल वर्णन॥

 

जारी........

आपु पावो तन मन हर्षाय। लेंय दुइ लछिमन तार मंगाय॥

लै आवैं अंगद तहँ हर्षाय। एक मैं कन्द मूल फल भाय॥

एक में मेवा और मिठाय। कहैं श्री राम भक्त सुखदाय॥

पाइये रावन मन हर्षाय। कहै रावन वैसे नहि पाय।२०५०।

 

आपु पहिले कछु लीजै पाय। फेरि सीता माता लें पाय॥

मिलै परसादी तब सुखदाय। लखन कि किरपा ते रघुराय॥

मिला आनन्द कहा नहिं जाय। राम फल कन्द मूल कछु पाय॥

मिठाई मेवा कर परसाय। सिया तब कन्द मूल फल पाँय॥

छुवैं मिष्ठान्न व मेवा भाय। लखन को देंय मातु हर्षाय।२०६०।

 

पवन सुत को दें जगत की माय। कटक में बंटै सबै हर्षाय॥

करैं सब जय जय कपि ऋक्षाय। राम सीता नाम सुनाय॥

रहा सब लोकन शब्द सुनाय। हर्ष रावन के तन मन आय॥

प्रेम से पावै खूब अघाय। शाम को सन्ध्या बन्दन भाय॥

करैं सब कटक सहित रघुराय। बजैं जब ग्यारह श्री रघुराय।२०७०।

 

कहैं हनुमान से बचन सुनाय। कटक में दीजै हाँक सुनाय॥

करैं सब शयन ऋक्ष कपि भाय। देंय हनुमान हाँक तहँ भाय॥

शयन कीजै सब जन सुखदाय। राम सीता को मन में ध्याय॥

शान्ति से सोय जाँय सुख पाय। पवन सुत पास में बैठैं जाय॥

राम के चरण पकरि हर्षाय। चापते लछिमन हैं सुखदाय।२०८०।

 

लगे बजरंग चापने भाय। कहैं हनुमान ते लछिमन भाय॥

दहिन सब अंग हमारो आय। कहैं हनुमान लखन सुखदाय॥

बाम यह अंग बड़ा वीराय। दहिन तो अंग वड़ा कहवाय॥

सिर्फ भोजन जल आदर भाय। युद्ध में बाम अंग सुखदाय॥

रहै आगे पीछे नहिं जाय। कहैं प्रभु मन्द मन्द मुसुकाय।२०९०।

 

दोऊ जन समता के हौ भाय। सुनै रावण औ बैठै आय॥

चरण प्रभु के पकड़ै हर्षाय। कहैं हनुमान लखन सुखदाय॥

आप तो रोज़ करत सेवकाय। प्रार्थना हमरी मानौ भाय॥

जाँय हमहूँ कछु तन फल पाय। सुनैं हनुमान लखन सुखदाय॥

दीन अति बचन दशानन राय। दोऊ जन प्रभु चरनन परि भाय।२१००।

 

हर्ष करि उठैं प्रेम उर छाय। लखन तो पास में पौढ़ै भाय॥

ध्यान में निद्रा जाय हेराय। पवन सुत राम नाम सुखदाय॥

सुमिरि के बैठैं लूम बढ़ाय। किनारै कटक के मानो भाय॥

किहे मुख लंका की तरफ़ाय। कोट अस बनै लूम को भाय॥

न कोई भीतर बाहेर जाय। ध्यान में मस्त रहैं सुखपाय।२११०।

 

रहैं सन्मुख प्रभु सीता माय। चरण दावै रावण हर्षाय॥

कहै प्रभु काहे देर लगाय। दिवस एक कल्प समान बिताय॥

नहीं कछु हमको यहाँ सोहाय। कृपा करि पठवो श्री सुखदाय॥

विनय यह मानो मन हर्षाय। कहैं प्रभु सुनो बचन चित लाय॥

समय पर सबै काम हो आय। समय के बिना करैं जो भाय।२१२०।

 

तुम्हारी कीरति को जग गाय। धरौ धीरज मन में हर्षाय॥

देर अब कछू नहीं है भाय। सुनै रावन प्रभु बचन को भाय॥

होय अति सुखी बोलि नहिं पाय। कहैं प्रभु करौ शयन अब जाय॥

बजे बारह मानो बचनाय। बजैं जहँ दुइ सब कटक नहाय॥

इष्ट अपने को सुमिरै आय। सुनै यह बचन राम के भाय।२१३०।

 

करै तब शयन दशानन जाय। बजैं जँह दुइ तहँ शब्द सुनाय॥

हाँक हनुमान कि जानौ भाय। उठैं सब शौच क्रिया को जाँय॥

फेरि सामुद्र के तट पर आय। हाथ पग धोवैं मिट्टी लाय॥

करैं परभाती कुल्ला भाय। फेरि अस्नान करैं हर्षाय॥

जारी........