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॥ अथ जय माल वर्णन॥

 

जारी........

लखन ते कहैं राम हर्षाय। मंगावो सब समान सुखदाय॥

पवन सुत जाँय अवध पुर धाय। श्री गुरु वशिष्ठ पास में भाय॥

लखन ने कह्यौ बीर सुखदाय। आप समरथ हरि किरपा भाय॥

जाइहौ आप न देर लगाय। आप की सरबरि को करि पाय॥

लै आवैं सिंहासन छत्राय। सबै सामान तिलक की भाय।२९१०।

 

परैं हरि के चरनन में धाय। उठैं औ उड़ैं बीर मरुताय॥

पहुँचि जाँय गुरु वशिष्ठ गृह आय। परैं चरनन में हिय हर्षाय॥

हाल सब देंय प्रेम से गाय। मगन मन होंय मुनी सुखदाय॥

ढिंढोरा अवध में देहिं पिटाय। खबरि गृह गृह में पहुँचै जाय॥

जाँय रनिवास में मुनि सुखदाय। संग हनुमान को लै हर्षाय।२९२०।

 

परीं कौशिल्या चरनन धाय। दीन मुनि आशिष हिय हर्षाय॥

पवन सुत राम भक्त सुखदाय। परैं माता के चरनन आय॥

बैठि गुरु के ढिग शान्ति से जाँय। कहैं मुनि प्रभु के पायक आँय॥

देंय सब चरित मुनीश बताय। जाय अति हर्ष मातु उर छाय॥

खबरि यह सब रानिन मिलि जाय। बढ़ै अति हर्ष न हृदय समाय।२९३०।

 

सुमित्रा कैकेयी तँह आय। गुरु के चरनन में परि जाँय॥

पाय आशिष बैठैं हर्षाय। पवन सुत चरन छुवैं उठि जाय॥

देंय मुनि सब चरित्र बतलाय। सुमित्रा कैकेयी हर्षाय॥

आय पुर वासी भवन में जाँय। हाल सुनि सब तन मन हर्षाय॥

चलैं मुनि अपने गृह को जाँय। संग में पवन तनय सुखदाय।२९४०।

 

मिठाई फल औ दूध को लाय। लगावैं भोग ध्यान करि भाय॥

प्रगट हों राम जानकी माय। प्रेम से लेवैं चट कछु पाय॥

जलै पी अन्तर हों सुखदाय। निरखि हनुमान लेंय यह भाय॥

देंय परसाद मुनीश्वर आय। पाय जल पियैं बीर मरुताय॥

देंय मुनि सब समान को लाय। कहैं यह बचन हिये हर्षाय।२९५०।

 

जाव अब नन्दि गाम ह्वै धाय। भरत शत्रुहन जहाँ दोउ भाय॥

भरत प्रभु के रंग रूप सोहाय। शत्रुहन लखन रंग सुखदाय॥

प्रभु की चरण पादुका लाय। भरत तप करते तन मन लाय॥

शत्रुहन करैं भरत सेवकाय। देखतै बनै कहौं का भाय॥

सम्हारैं राज काज सुखदाय। प्रजा कोइ दुःख न तनकौ पाय।२९६०।

 

चारि भाई संग प्रगटे आय। राम जी सब से बड़े कहाय॥

भरत जी हरि से छोटे आय। लखन से छोटे शत्रुहन भाय॥

देंय या को सब हाल बताय। प्रगट कौशिल्या से रघुराय॥

भरत कैकेयी ते सुखदाय। लखन शत्रुहन सुमित्रा जाय॥

चलैं हनुमान चरन शिर नाय। पहुँचि जाँय नन्दिग्राम में जाय।२९७०।

 

धरैं सामान हिये हर्षाय। परैं शत्रुहन के चरनन धाय॥

कहैं शत्रुहन कहाँ ते आय। हाल सब देंय तुरत बतलाय॥

लपटि शत्रुहन लेंय उर लाय। दृगन ते नीर चलै सुखदाय॥

शत्रुहन जाँय भरत ढिग धाय। कहैं सब चरित मधुर स्वर गाय॥

सुनत ही भरत उठैं हर्षाय। गुफा के बाहर जावैं आय।२९८०।

 

निरखि कै पवन तनय सुखदाय। चरन पर परैं उठा नहिं जाय॥

उठाय के भरत लेंय उर लाय। पकरि कर बैठारें हर्षाय॥

कुशल माता सीता की भाय। कहौ श्री हरि की लखन की गाय॥

कहैं हनुमान सुनैं चित लाय। प्रेम में गद्गद बोलि न जाय॥

कहैं हनुमान सुनो सुखदाय। होय हमको अज्ञा चलि जाँय।२९९०।

 

कहैं श्री भरथ शत्रुहन भाय। भोग कछु दीजै इन्हैं पवाय॥

कहैं हनुमान चरन शिर नाय। श्री गुरु गृह ते आयन पाय॥

जारी........