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२४१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२४५)


पद:-

इज्जत उसी की सच्ची हरि भजन जिसने जाना।

दुनियावी इज्जत कच्ची छूटै न आना जाना।

सतगुरु से जानि सुमिरन तब मन को प्रेम साना।

अन्धे कहैं उसी का साकेत में ठेकाना।४।