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२१० ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२२५)


पद:-

क्या साँवलो सलोनो जसुदा को लाल।

कसकत मसकत कैसी चलत चाल।

शिर क्रीट मकुट कुंडल विशाल।

तन सुभग बसन घुंघुवारे बाल।४।

धरि अधर सुघर वंशी रसाल।

कूकत गावत क्या राग आल।

अंधे कहैं हर दम करौ ख्याल।

सन्मुख राजैं त्रिभुवन भुवाल।८।