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२१० ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(२१६)


दोहा:-

राधे रूठि के बैठि गईं मुख पै चलै कोडार।

सखा सखी बिन्ती करैं बोलैं नहिं चुपमार॥

श्याम तहाँ पहुँचे तुरत करि गहि लीन उठाय।

चलो प्रिया अब रहस हो तुम बिन कछु न स्वहाय॥

राधे श्याम के संग चलीं सखा सखी चलि दीन।

अंधे कह सब रहस में भये तबै लवलीन।३।