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२१० ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२१५)


पद:-

मान अपिमान न लागै जा को सो है ध्यानी ज्ञानी ।

अंधे कहैं जियति ही तरिगा धन्य धन्य सो प्रानी।

नाम रूप परकाश दसा लय काटिसि कर्म निशानी।

सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख दें छबि तानी।४।

शाँति शील संतोष दीनता सरधा छिमा सयानी।

दया धर्म औ प्रेम भाव विश्वास सत्य गुण खानी।

सतगुरु करै भजै तन मन ते तब इस पद को जानी।

ताते होय अनर्थ कभी नहिं पायो अति सुख खानी।८।


शेर:-

दीनता शाँति जब आवै मिलै निर्वाण पद वाको।

कहैं अंधे मिली छुट्टी गया हटि गर्भ को चाको॥