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२१० ॥ श्री अंधे शाह जी ॥


पद:-

अरे हाँ रे अन्धे राम नाम श्रुति सार।

सुर मुनि सब नित प्रति हैं ध्यावत सब में सब से न्यार।

निरगुनि निराकार अविनाशी तीनि लोक उजियार।

भक्तन की भक्ती से सरगुन बनि करता खेलवार।

जल भोजन संगै में करता सोवत पाँव पसार।५।

नाना बिधि के खेल देखावै अमित रूप ले धार।

शरनि तरनि औ मरनि जियति हो जो पावै मन मार।

सतगुरु करै भजन बिधि जानै घट ही में सब कार।

ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि खुलि जावै रंकार।

रासि क नाम राम का यह है रेफ़ बिन्दु सरकार।१०।

महा मंत्र औ मंत्र परम लघु बीज मंत्र सरदार।

कूटस्थो अक्षर यहि कहते सब का प्राण अधार।

उत्पति पालन परलय करता सब का है यह तार।

अगम अथाह अलेख अकथ है कोई न पायो पार।

अभ्यंतर धुनि होत अखंडित हर शै से झंकार।१५।

ब्रह्माण्डों से तार आवते सुनि सुनि हो मतवार।

हुकुम होय तौ कहौ किसी से नाहीं लो चुप मार।

नागिनि चक्र कमल सब जागैं महक उड़ै निशि बार।१८।