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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१६५)


दोहा:-

दोनो दिसि खट्टा रहै जो न भजै भगवान।

अन्धे कह तन छोड़ि कै नर्क को करै पयान॥


चौबोला:-

नर्क को करै पयान जहाँ पर दुख है भारी।

हाय हाय चिल्लाँय वहाँ सब नर औ नारी।

नाना बिधि के कष्ट पलक नहिं सकते मारी।

लपटैं गन्ध की उड़ैं रहत तहँ अति अंधियारी।४।

हरि का सुमिरन कीन लीन जिन मन को मारी।

ते जावैं साकेत न आवैं गर्भ मंझारी।

सरनि मरनि औ तरनि लीन जिन जियति निहारी।

अन्धे कहैं सुनाय दीन बहु जीवन तारी।८।