१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१६४)
पद:-
जो कोइ राम नाम में सट्टा।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जाना गर्भ कौल को कट्टा।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप सामने अंट्टा।
अमृत पियै सुनै घट बाजा सुर मुनि दें नित गट्टा।४।
मुख में धरत घुलत नहिं देरी उतरैं कंठ से झट्टा।
नागिनि जगै चक्र हों चालू कमल खिलैं सब फट्टा।
अन्धे कहैं अन्त निजपुर हो छूटै कुल का बट्टा।
नर नारी तन दुर्लभ पायो भजन में लागौ चट्टा।८।