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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (१६०)


पद:-

सब्द पै लागि जाय जब सुरती।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानै गर्भ की बाकी फुरती।

माया अपना दल लै भागै कबहूँ आय न घुरती।

नाम कि धुनि परकास समाधी दोउ कर्मन लै हुरती।

सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख झाँकी जुरती।

अन्धे कहैं छोड़ि तन अवध में पहुँचि जाव तब फुरती।६।