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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१५१)


पद:-

श्याम तेरी बंशी मो को करि डाली बावरी।

ऐसी वा में गांस फांस लागि जाति तावरी।

छिन छिन बोलै बोली आव आव आव री।

कछु न सुहाय कहो सोंचै कौन दाँव री।

भूषन बसन औ भूख प्यास भूलैं सब मन कहैं चलो चलो

धाव धाव धाव री।५।

कूदि पड़े जमुना जी में ऐसी तान चाव री।

पार होंय सारी सखी प्रभु नाम नाव री।

पास में पहुँचि जाँय कहैं हाँ बजाव री।

कोई बैठी कोई ठाढ़ी कर जोरैं सुकुमारी,

नैनन ते नीर जारी, देखा ठाँव ठाँव री।

अन्धे कहैं ऐसा नेम, एक रस सदा प्रेम,

वाकी सब दिसि क्षेम, हरि गुण गाव री।१०।