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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१५०)


पद:-

करो जब सतगुरु मिलै तब मारग निज धाम जाने का यह तरीका।

नहीं तो भक्तों जगत में घूमौ करम है बाधा श्री हरी का।

धुनि ध्यान लय तेज रूप पाकर हटा दो जियतै में दुख करी का।

निर्बैर निर्भय रहो एक रस कहैं यह अन्धे अब मरी का।४।


दोहा:-

श्रेष्ट प्रेम सब सखिन का सुर मुनि कह्यो सुनाय।

अन्धे कह सतगुरु सरनि कोई इस मार्ग पर जाय॥