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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (१४७)


पद:-

बिजुली लगी हुई घट भीतर पावै कोटिन में कोइ बार।

सतगुरु करि तरकीब लेय सिखि सो देखै उजियार।

छये ठौर इंजन हैं लागे दसौं दिसन में तार।

एक जगह से खटका दाबौ तन भर में चमकार।

ध्यान होय लय दसा नाम धुनि रोम रोम रंकार।५।

सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि हर दम लो दीदार।

अनहद सुनो पियो घट अमृत करैं देव मुनि प्यार।

नागिनि जगै चक्र सब नाचै कमल खिलैं एक तार।

अन्धे कहैं अन्त निज पुर हो छूटै गर्भ क भार।

जियतै में तै कीजै भक्तों नर तन सुख का सार।१०।