१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१४५)
पद:-
सतगुरु से जानि मारग नर तन सुफ़ल बनाया।
अन्धे कहैं वही तो पितु मातु का कहाया।
उसकी भलाई दोउ दिसि जियतै में है कमाया।
सच्चा वही है साधक बच्चा तुम्हैं सुनाया।
धुनि ध्यान तेज लय पा दोनो करम जलाया।
षट रूप उसके सन्मुख हर दम छटा को छाया।६।
सुर मुनि मिलैं लिपटि कर नैनों से जल बहाया।
अमृत पिये भरा घट अनहद सुनै बधाया।
नागिनि जगा के सारे लोकन में घूमि आया।
चक्कर चला के कमलन एक तार है फुलाया।
तन त्यागि चढ़ि सिंहासन साकेत को सिधाया।
सूरति शब्द का मारग भक्तों यही कहाया।१२।