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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१०३)


पद:-

सतगुरु का करि ध्यान प्रथम तब सूरति शब्द कि जाप करो।

अजपा यह जाप कहावत है मारग विहंग में धाय परो।

रसना न हिलै माला न फिरै मन नाम के ऊपर लाय धरो।

धुनि सुनिये हर दम हर शै से जो रेफ़ बिन्दु सब से है खरो।४।

परकास से लय में पहुँचि जाव शुभ अशुभ कर्म जँह जाय जरो।

सन्मुख सिय राम लखौ भक्तों कर जोरि प्रार्थना नित्य करो।

जियतै भइ अदा गरभ बाकी नित सुमिरन करना वँह सखरो।

कहैं अन्ध शाह तन त्यागि चलो साकेत में लेहु अपन बखरो।८।