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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१०२)


पद:-

हरि सुमिरौ नैनन मूँद मूँद, अन्धे कह घर लो कूद कूद।

आलस को मारो खूँद खूँद, कटि जावै भव की फूँद फूँद।

अमृत घट टपकत बूँद बूँद जे पावत नहिं ते सूद सूद।

जम पकड़ि करैं सिर गूद गूद सब तन करि डारैं जूद जूद।४।


शेर:-

प्रेम मुरशिद से जो करिहै वही सच्चा गदा होगा।

कहैं अन्धे जियति तरिहै गरभ रिन से अदा होगा॥


दोहा:-

मायावी संसार में सदा रहौ ह्वै दीन।

अन्धे कह तप धन बचे सकै न कोई छीन॥