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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(९८)


पद:-

सतगुरु चरन कमल बलिहारी। सतगुरु बचन लीन उर धारी।

सतगुरु दरशन से सुख भारी। जियतै जीति लीन जग पारी।

सतगुरु करि सुमिरौ मन मारी। कर्म कि रेख देहु चट टारी।

अन्धे कहैं सुनौ नर नारी। तन तजि बैठो अवध मंझारी।४।