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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(९७)


पद:-

जाने दे मो को नन्द के ललनवां।

दूध दही सब दिन हौ लूटत संग सखा क्या बाँधे ढंगनवां।

गृह के सब मो पै रिसियाते मानत काहे न मेरो बचनवां।

तन मन श्वांसा समै आपका बार बार मैं चूमौं चरनवां।४।

बिन देखे कल पल भर नाहीं प्राण के प्राण हमारे सजनवां।

नाम आपका प्रेम से सुमिरैं ते धुनि सुनि छबि लखति द्रगनवां।

भीतर बाहर आपको देखै तिनहिं पवावत मिसिरी मखनवां।

अन्धे कहैं सखी सब हरि के प्रेम में हर दम रहतीं मगनवां।८।