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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(७१)


पद:-

मुरशिद मुरीद मन भयो एक पोशीदा बातें होन लगीं।

अन्धे कहैं सूरति शब्द जमी मूरति सन्मुख में प्रेम पगी।

कहना है सुलभ करना कर्रा बड़े सुकृत से कोइ इस रंग में रंगी।

तन छोड़ि चला निज वतन खिला फिर गर्भ नर्क में नहीं टंगी।४।


चौपाई:-

है परमारथ का गुप्त ज्ञान। सतगुरु करि बैठो धरो ध्यान।

अन्धे कहैं तन मन हो समान। खुलि जावैं भक्तौं नैन कान॥


चौपाई:-

परस्वारथ में तन मन लगाय। अन्धे कहैं निज को दे मिटाय।

दोनो दिसि वाकी हो बधाय। तन त्यागि के हरि के धाम जाय॥


दोहा:-

सेवा करना कठिन है कहव सुनव आसान।

अन्धे कह सतगुरु बचन वेद शास्त्र परमान॥