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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(६१)


दोहा:-

जिस पतरी में खात हैं, उसी में करते छेद।

वै पापी घटिहा बड़े, नेक न आवत खेद॥

तन मन ते नहिं मानते, जात कुजात क भेद।

अन्धे कह यमपुर बसैं, भाषत सुर मुनि बेद।२।