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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(५७)


पद:-

सुमिरन पाठ कीरतन पूजन कथा कहत हैं प्रेम नहीं।

नर नारी करैं मान बड़ाई छूटत नेम औ टेम नहीं।

चम चम चम चम चमकत देखौ देत सुगन्धी हेम नहीं।

अन्धे कहैं बिना मन जीते भक्तों दोउ दिशि क्षेम नहीं।४।