साईट में खोजें

१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(४१)


पद:-

करि देव तिलाँजुलि सान मान। जियतै बनि जावो भाग्यवान॥

अन्धे कहैं सच्चा यही ज्ञान। सुर मुनि संग होवै खान पान॥

परकास नाम धुनि लय औ ध्यान। अनहद की सुनिये बिमल तान॥

अमृत पीजै घट में उफ़ान। सन्मुख हो झाँकी षट महान॥

नागिनि औ चक्कर कमल जान। निज निज थानन से हो उथान॥

तन त्यागि के चलिये चढ़ि बिमान। श्री अवध में राजौ हरि समान।६।


दोहा:-

सर कमान ते मारते नित प्रति मन औ चोर।

अंधे कह ठंढे भये तोर मोर नहि सोर॥

पायन में बेड़ी पड़ी, हाथ हथकड़ी जान

अंधे कह शुभ करम बिन मिल्यो नर्क दुख खान।२।